सभी धर्म क्रियाएँ नमस्कार महामंत्र से प्रारंभ होती है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

Update: 2025-09-01 10:34 GMT

उदयपुर। मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।

श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि सोमवार को आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर की निश्रा में नमस्कार महामंत्र की महिमा विषय पर प्रवचन श्रृंखला का शुभारंभ हुआ है। जावरिया ने बताया कि 7 सितम्बर से नौ दिवसीय भाष्य नवकार जाप, नौ एकासने एवं नवाह्निका महोत्सव प्रारंभ होगा।

धर्मसभा में प्रवचन देते हुए जैनाचार्य श्री ने कहा कि जैन धर्म की सभी धर्मक्रियाओं की शुरुआत नमस्कार महामंत्र के स्मरण से होती है। श्रावक को सूर्योदय से 96 मिनट पहले ब्रह्म मुहूर्त में निद्रा का त्याग करके सबसे पहले नमस्कार महामंत्र का स्मरण करना चाहिए। तो रात्रि में शयन से पहले भी नमस्कार महामंत्र का स्मरण करना चाहिए। दिन की शुरुआत और दिन का अंत नमस्कार महामंत्र के स्मरण से ही होना चाहिए और दिन भर के सभी धर्म क्रिया के पहले नमस्कार महामंत्र का स्मरण होना चाहिए। नमस्कार महामंत्र में सबसे पहले अरिहंतों को नमस्कार करते है। अपनी आत्मा के सच्चे हितैषी और उपकारी अरिहंत है। उन्होंने जगत् के जीवों को हमेशा के लिए सुखी बनने का सच्चा मार्ग बताया है। जैसे अस्पताल में मरीज को सभी प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त होती है। सोने के लिए मुलायम गद्दी- तकिये, ए. सी, पंखे, कूलर की व्यवस्था, आस-पास नौकर-चाकर आदि अनेक सुविधा मिलने पर भी कोई भी मरीज हमेशा के लिए अस्पताल में रहना पसंद नहीं करता है। उसके मन में तो एक ही भावना होती है- कब में अस्पताल से छूटकर घर लौटू। सभी आरोग्य चाहते है. रोगी बने रहना कोई नहीं चाहता है। वैसे ही हमारी आत्मा पर कर्म का रोग लगा है। इस कर्म के रोग के कारण ही संसार में सभी जीवों को दु:खी बनना पड़ता है। दुनिया छोटे. छोटे दु:खों से मुक्त बनने का प्रयत्न करती है परंतु इन दु:खों की मुक्ति चिर स्थायी नहीं है। चिरकाल तक दु:खों से पूर्ण मुक्ति मात्र मोक्ष में है। उस मोक्ष को स्वयं अरिहंत परमात्मा ने आत्मिक साधना के बल पर जानकर उसका मार्ग जगत् के सभी जीवों को बताया है। प्रतिदिन प्रात: 9.30 बजे प्रेरणादायी प्रवचन होंगे ।

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