सभी प्रकार बहिरंग अंतरंग परिग्रह को छोडऩा ही उत्तम त्याग धर्म है : बालयोगी मुनि श्रुतधरनंदी

By :  vijay
Update: 2024-09-15 10:26 GMT

 

उदयपुर,  । गोवर्धन विलास हिरण मगरी सेक्टर 14 स्थित गमेर बाग धाम में श्री दिगम्बर जैन दशा नागदा समाज चेरिटेबल ट्रस्ट एवं सकल दिगम्बर जैन समाज के तत्वावधान में गणधराचार्य कुंथुसागर गुरुदेव के शिष्य बालयोगी युवा संत मुनि श्रुतधरनंदी महाराज, मुनि उत्कर्ष कीर्ति महाराज, क्षुलक सुप्रभात सागर महाराज के सान्निध्य में प्रतिदिन वर्षावास के तहत दस लक्षण महापर्व आयोजन की धूम जारी है।

चातुर्मास समिति के महावीर देवड़ा, पुष्कर जैन भदावत, दिनेश वेलावत व कमलेश वेलावत ने संयुक्त रूप से बताया कि रविवार को गमेेर बाग धाम में बालयोगी युवा संत मुनि श्रुतधरनंदी महाराज के सान्निध्य में दशलक्षण पर्व के तहत आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म दिवस मनाया गया। इस दौरान 400 से अधिक जोड़ों ने दस लक्षण विधान की पूजा-अर्चना की व मूलनायक भगवान पर शांतिधारा व पंचामृत अभिषेक किया। आज प्रभु के मस्तक पर जैसे जैसे दूध की शांतिधारा होती गई, वैसे-वैसे प्रभु का मुख चमकने लगा। कामधेनु प्रभु पर अभिषेक करनें की होड़ सभी श्रावक-श्राविकाओं में लगी रही। देश के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे सैकड़ो श्रद्धालुओं ने खूब धर्म आराधना एवं भक्ति भाव का लाभ लिया।

सकल दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत, महामंत्री सुरेश पद्मावत ने बताया कि इस दौरान आयोजित धर्मसभा में बालयोगी युवा संत श्रुतधरनंदी महाराज ने प्रवचन में कहंा कि उत्तम त्याग धर्म दान देकर मन में आनंदित होना अगर कुछ चाहते हो तो कुछ दे दो कुछ कुछ चाहते हो तो कुछ कुछ दे दो बहुत कुछ चाहते हो तो बहुत कुछ दे दो सब कुछ चाहते हो तो सब कुछ दे दो सभी प्रकार बहिरंग अंतरंग परिग्रह को छोडऩा ही उत्तम त्याग धर्म है । मनुष्य की शुद्धात्मा के ग्रहण पूर्वक ब्राह और अभ्यन्तर परिग्रह का छुटकारा त्याग हैं ,त्याग धर्म हैं एवं दान पुण्य हैं, त्यागियों के पास रंच मात्र भी परिग्रह नहीं होता है जबकि दानियों के पास ढेर सारा परिग्रह पाया जाता है,गुण और दोष की सच्ची समझ नहीं होने के कारण भी व्यक्ति अपने दोषों का त्याग नहीं कर पाता हैं, त्याग एक ऐसा धर्म है जिससे प्राप्त कर आत्मा पूर्ण ब्रह्म में लीन हो सकती है।

कार्यक्रम का संचालन लोकेश जैन जोलावत ने किया। इस अवसर पर अध्यक्ष शांतिलाल वेलावत, विजयलाल वेलावत, पुष्कर जैन भदावत, महावीर देवड़ा, दिनेश वेलावत, कमलेश वेलावत, भंवरलाल गदावत, सुरेश पद्मावत, देवेन्द्र छाप्या, ऋषभ कुमार जैन, भंवरलाल देवड़ा, मंजु गदावत, सुशीला वेलावत, बसन्ती वेलावत, भारती वेलावत, शिल्पा वेलावत, अल्पा वेलावत सहित सकल जैन समाज के सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रहे।

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