उदयपुर । मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बडे हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है। श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि आराधना भवन में पर्युषण महापर्व के तहत आचार्य संघ के सानिध्य में सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन सुबह व्याख्यान, सामूहिक ऐकासना व शाम को प्रतिक्रमण आदि की तप आराधना कर रहे है। जावरिया ने बताया कि धर्मसभा में प्रकाशबेन-रणजीतभाई मेहता परिवार की ओर से जैनाचार्यश्री को कल्पसूत्र ग्रंथ अर्पण किया गया। अन्य लाभार्थी द्वारा पांच ज्ञान पूजा एवं अष्टप्रकारी पूजा की गई।
राजेश जावरिया ने बताया कि आराधना भवन में उदयपुर में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की आराधना उत्साह और उल्लास के साथ चल रही है। जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेनसूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा कि पुण्य का पोषण और पाप का शोषण करने की अपूर्व शक्ति पर्युषण पर्व में रही हुई है। शंत्रुजय आदि स्थावर तीर्थ की यात्रा के लिए हमे स्वयं घर छोडकर जाना पडता है, जबकि ये पर्व तो कालक्रम से स्वत: अपने द्वार पर देते हुए आते है। जैसे तीर्थों का राजा शत्रुंजय तीर्थ है। वैसे ही पर्वो का राजा पर्युषण महापर्व है। इस महापर्व में कल्पसूत्र आगम ग्रंथ का खूब आदर और बहुमान पूर्वक श्रवण करना चाहिए। जिस प्रकार देवों में इन्द्र, तारों में चन्द्र, न्याय प्रवीण में श्रीराम, रुपवान में काम, हाथियों में ऐरावण, साहसिको में रावण, मंत्र में नवकार, बुद्धिमानों में अभयकुमार, तीर्थों में शत्रुंजय, गुणों में विनय, धनुर्धर में अर्जुन, वृक्षों में आम्रवृक्ष उत्तम है. उसी प्रकार सर्व शास्त्रो में कल्पसूत्र उत्तम है। यह कल्पसूत्र साक्षात् कल्पवृक्ष तुल्य है। इसमें महावीरप्रभु का जीवन चरित्र बीजरूप है। पाश्र्वनाथ प्रभु का जीवन चरित्र अंकुर स्वरूप है। नेमिनाथ प्रभु का चरित्र स्कंध स्वरूप है। ऋषभदेव प्रभु का चरित्र डाली स्वरूप है। स्थविरावली पुष्प स्वरूप है। सामाचारी का ज्ञान सुगंध स्वरूप है तथा मोक्ष की प्राति फलस्वरुप है। जो मनुष्य एकाग्र चित्तवाला होकर, पूजा प्रभावना में तत्त्पर होकर इक्कीस बार कल्पसूत्र का श्रवण करता है वह इस भव सागर को पार करता है। जो इस ग्रंथ को पठन-पाठन में सहायता करता है, बहुमान करता है वह आठ भवों में मोक्ष प्राप्त करता है।