गरीब की गाय बकरी “विषय पर तकनीकी सत्र का आयोजन
उदयपुर / राजकीय पशुपालन प्रशिक्षण संस्थान में “गरीब की गाय बकरी “विषयक पर तकनीकी सत्र आयोजित किया गया। संस्थान के उपनिदेशक डॉ. सुरेन्द्र छंगाणी ने कहा कि गाँधीजी ने बकरी को गरीब की गाय माना। बकरी का पालन पोषण सरल होता है एवं कम कीमत एवं अधिक गुणवत्ता युक्त उत्पादन के कारण बकरीपालन से पशुपालक का उन्नयन शीघ्र संभव है। डॉ. छंगाणी ने बताया कि उदयपुर में कुल पशुधन 28.76 लाख है जिसमें बकरी वंश 13.60 लाख है जो कि कुल पशुधन का 47.28 प्रतिशत है अर्थात जिले का आधा पशुधन बकरी वंश है फिर भी बकरी वंश के उत्पादन से बकरीपालक समृद्ध नही हो सके है इसका एक मुख्य कारण है कि बकरीपालन आज भी असंगठित क्षेत्र के रूप में ही फैला हुआ है और दुसरा कारण बिचौलियों की वजह से बकरी पालकों को पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है। डॉ. छंगाणी ने कहा कि वर्तमान में अब जरूरत है गाँधीजी की उस बकरी की ओर ध्यान देने का, अर्थात बकरी पालन क्षेत्र को संगठित करने का, पशुपालकों को स्वयं सहायता समुह बनाकर संगठित होकर कार्य करने की, जिससे बिचौलियों का हस्तक्षेप समाप्त हो सके। वर्तमान में बकरी के उत्पादन जैसे दूध एवं मांस की दिन प्रतिदिन मांग बढ़ती जा रही है साथ ही उपउत्पाद जैसे भींगणी या इसका वर्मी कम्पोस्ट भी अत्यधिक उर्वरक होती है। डॉ. पदमा मील ने बताया कि राज्य में कुल पशुधन का 36 प्रतिशत बकरी वंश है। राज्य में सर्वाधिक बकरीवंश बाड़मेर जिले में है जिसकी संख्या 29.46 लाख है। दुसरा स्थान जोधपुर का है जंहा 16.40 लाख बकरीवंश है ।। उदयपुर 13.60 लाख बकरीवंश के साथ राज्य में तीसरे स्थान पर है। डॉ. सुरेश शर्मा ने बकरीपालन की विस्तृत जानकारी देते हुये बताया कि बकरी के दूध में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक होती है एवं बकरीपालन प्रबंधन आसान होने के कारण महिलायें एवं बच्चे भी इसका पालन पोषण बड़ी सरलता से कर सकते है। पशुपालन डिप्लोमा के विद्यार्थियों ने गाँधीजी को श्रद्वाजंलि देते हुए यह संकल्प लिया कि बकरीपालकों को प्रेरित कर उन्हे संगठित कर इससे पूरा लाभ दिलाने का प्रयत्न करेंगें।