पर्युषण का यही संदेश कि अंतर की कालिमा को धोकर स्वच्छ बन जाओ : साध्वी जयदर्शिता

Update: 2025-08-20 07:55 GMT

उदयपुर,। तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ जैन मंदिर में श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में कलापूर्ण सूरी समुदाय की साध्वी जयदर्शिता , जिनरसा , जिनदर्शिता व जिनमुद्रा महाराज आदि ठाणा की चातुर्मास सम्पादित हो रहा है। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि बुधवार को आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में आठ दिवसीय पर्युषण महापर्व शुरू हुए। सुबह 7 बजे साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई। सभी श्रावक-श्राविकाओं ने जैन ग्रंथ की पूजा-अर्चना की। नाहर ने बताया कि बाहर से दर्शनार्थियों के आने का क्रम निरंतर बना हुआ है, वहीं त्याग-तपस्याओं की लड़ी जारी है। नाहर ने बताया कि साध्वी जयदर्शिता  आदि ठाणा के सान्निध्य में आठ दिन तक सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन सुबह व्याख्यान, सामूहिक ऐकासना व शाम को प्रतिक्रमण तथा भक्ति भाव कार्यक्रम का आयोजन होगा।

बुधवार को आयोजित धर्मसभा में साध्वी जयदर्शिता श्रीजी ने पर्यूषण महापर्व की विशेष विवेचना करते हुए बताया कि प्रथम दिन हमें पांच कर्तव्य के बारे में जानना है। पर्युषण महापर्व प्रतिवर्ष की तरह नई उमंग, नई तरंग, नये विश्वास के साथ आत्म-जागृति का अनुपम संदेश लेकर उपस्थित है। आइये हम बाहर विषादों एवं विवादों को भूल कर अपने जीवन को करुणा एवं मैत्री वाणी से सजाएं, संवारे। यह महापर्व प्राणी मात्र को प्रेम का पैगाम बाँटना है, जीवन के सांज पर स्नेह की मधुरिम सरगम बजाता है, हृदय में प्रसन्नता के पुष्प खिलाता है तथा मन से कटुता के कालुष्य को काफूर करता है। अध्यात्म के आलोक में आज हम पाँच कर्तव्यों को जाना - अमाहि प्रवर्तन - यानि अहिंसा का प्रवर्तन, अहिंसा में अचूक शक्ति है, अहिंसा वह परम तत्व है जिसमे जीन मात्र के प्रति समता सद्भावना हो। साधर्मिक वात्सल्य यानी अहिंसा कर्म का पालन करने वाले साधर्मी है उसके प्रति आत्मीय भाव, सहयोग का भाव सौहार्द का भाव हो। क्षमापना यानि क्रोध, मान, माया, लोभ रुपी कपायों के आदेश में किसी अहमी अपने व्य प्रकार व्यवहार से त्रुटि हुई हो तो मन वचन काया से क्षमापना करनी। अहम तप यानि लगातार तीन दिन तक उपवास करना, यह तप कर्मों के पाप को मिटाता है, आत्मा को पवित्र करता है। चैत्य परिपाटी यानि उमंग, उल्लास, मुद्धा विश्वास तथा आत्म शुद्धि के साथ अपने ग्राम-नगर के मंदिरों में जिन दर्शन पूजन भक्ति का लाभ दर्शन से पाप मिटते है, वन्दना से मनोकामना फलती है, पूजा से सौभाग्य प्राप्त होता है।

पर्वाधिराज पर्यूषण पर्व के पहले दिन साध्वी जयदर्शिता ने कहा प्रथम दिन के 5 कर्तव्य हर ऐक श्रावक को करने आवश्यक है। अनादि काल से जिनेश्वर भगवंतो के शासन मे अपने भरतक्षेत्र में पर्यषण पर्व को शाश्वत रुप से मनाते है। उन्होनें कहा कि 19 : अमारी प्रवर्तन 9 अकबर बादशाह ने हिरवी जय सूरीश्वर जी महाराजा के उपदेश से भारतभर में अमारी का प्रवर्तन करवाया था। 29 : साधर्मिक वात्सय 9 भगवान आदिनाथ प्रभु के उपदेश से भरत महाराजा ने साधर्मिक वात्सय किया था। 39 : क्षमापना 9 भगवान महावीर प्रभु की 36000 साधवीजी ओ की गणमान्य संघ प्रमुखा चंदनाजी ओर मृगावति जीने जो क्षमापना कि वैसे करनी चाहिये। 49 : अ_म तप 9 वर्ष में ऐक बार नागकेतु की तरा कल्याण कामी आत्मा ओ को ऐक अ_म तप करना चाहिये। 59 : चैत्र परिपाटी - वर्ष में एक बार नगर के प्रमुख मंदिरों मे महोत्सव समेत वाजे गाजे के साथ जिन मंदिर के दर्शन के लीये जाना अनिवार्य आवश्यक है।

इस अवसर पर कुलदीप नाहर, भोपाल सिंह नाहर, अशोक जैन, पारस पोखरना, राजेंद्र जवेरिया, प्रकाश नागौरी, दिनेश बापना, अभय नलवाया, कैलाश मुर्डिया, चतर सिंह पामेच, गोवर्धन सिंह बोल्या, सतीश कच्छारा, दिनेश भंडारी, रविन्द्र बापना, चिमनलाल गांधी, प्रद्योत महात्मा, रमेश सिरोया, कुलदीप मेहता आदि मौजूद रहे।

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