नौतपा: भीषण गर्मी में मनरेगा श्रमिकों का क्या हाल होगा, सरकार व प्रशासन ध्यान दें

By :  vijay
Update: 2025-05-25 11:01 GMT
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राजेश शर्मा धनोप। गर्मी के मौसम में रविवार 25 मई से शुरू होने वाले "नौतपा" यानि भीषण गर्मी में पूर्णतया खुले में श्रम करने वाले मनरेगा श्रमिकों का क्या हाल होगा। इस सम्बन्ध में सरकार व प्रशासन को अलर्ट मोड़ पर आकर गंभीरता व गहनता से ध्यान देकर ख्याल रखकर इनके हित के साथ जरूरी क़दम उठाकर राहत प्रदान कर इनकी रक्षा-सुरक्षा करना निहायत अति आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि गर्मी के मौसम में हर साल की तरह रविवार से शुरू होने वाले "नौतपा" के तहत सूर्य की तपिश अपने चरमोत्कर्ष पर होती है ओर तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंचना आम बात हो जाती है। इस नौतपा के दौरान तेज, प्रबल व भीषण गर्मी तथा तापमान में जबरदस्त बढ़ोतरी होने की संभावना बनी रहती है। साथ ही दिन के समय गर्म हवाएं यानि "लू" चलतीं है तथा लू का कहर तेज रूप अख्तियार कर लेता है। यहां स्मरणीय है कि राजस्थान सरकार द्वारा अप्रैल 2025 में जारी "मनरेगा" सम्बंधित आदेश के तहत मस्टरोल में दर्ज सभी महिला-पुरुष "श्रमिकों" को रोजाना आठ घंटे ( एक घंटा विश्राम सहित ) श्रम करने के निर्देश है। भीषण गर्मी के मौसम को दृष्टिगत रखते हुए मनरेगा श्रमिकों के लिए योजनांतर्गत कार्यों का समय सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक ( विश्राम काल रहित ) निर्धारित किया गया है। साथ ही यदि कोई श्रमिक समूह निर्धारित टास्क के अनुसार अपना कार्य पूर्ण कर लेता है तो वह कार्य की माप मेट के पास उपलब्ध मस्टररोल में अंकित एवं टास्क प्रपत्र में अंकित करवाने के उपरांत एवं समूह के मुखिया के हस्ताक्षर के उपरांत कार्य स्थल छोड़ देने के आदेश भी है। लेकिन वर्तमान में भीषण झुलसाने वाली प्रबल गर्मी व तेज गर्म हवाएं यानि "लू" के चलते मनरेगा योजना में कार्यरत महिला पुरुष श्रमिकों के हाल व हालात बद्तर है। श्रमिकों की कार्य क्षमता भी अनुकूल नहीं है। तथा वर्तमान मौसमी प्रतिकूल प्रभाव व स्थितियों को देखते हुए मनरेगा श्रमिकों का कार्य स्थल पर "कार्य" करने का समय भी अपेक्षाकृत कम होना लाजिमी है। साथ ही इनको दिए जाने वाला "टास्क" भी कम होना चाहिए। बहरहाल जाहिर है कि सरकार के आदेशानुसार प्रशासन द्वारा मरेगा श्रमिकों की सुविधा व छाया, पेयजल, आदि के लिए लाखों-करोड़ों रुपए की लागत से टेंट, रस्से - रस्सियां, बांस, पेयजल टंकियों आदि की खरीद फरोख्त की गयी है। लेकिन उक्त सामग्री मनरेगा कार्यस्थल पर मौके पर लगभग उपलब्ध नहीं होकर ग्राम पंचायतों में रखी हुई है। इनका उपयोग सदुपयोग नहीं किया जा रहा। ज्ञातव्य है कि मनरेगा योजना के अंतर्गत 70-80 वर्ष की आयु वाले महिला पुरुष श्रमिकों के नाम भी अंकित है तथा कार्यरत हैं। जिनके द्वारा इस वर्तमान भीषण गर्मी में अपेक्षित "श्रम" करना यानि कार्य करना नामुमकिन है। साथ ही यह भी हकीकत है कि मनरेगा कार्यस्थल पर श्रमिको की सुविधा के लिए वर्तमान में "प्राथमिक चिकित्सा किट" भी उपलब्ध नहीं है। बहरहाल मनरेगा श्रमिकों के लिए सरकारी नियमानुसार प्रदत अपेक्षित सुविधाएं सिर्फ कागजों में चल रही है। सरकारी गाईड लाईन की धज्जियां उड़ाई जा रही है। प्रशासन व प्रशासनिक अफसरों द्वारा इस "मनरेगा" जैसी जनहित व लाभकारी योजना के अंतर्गत संचालित "कार्यों" की नियमित व सुचारू "मानिटरिंग" व सघन औचक निरीक्षण की प्रभावी व्यवस्था भी दिखाई नहीं दे रहीं हैं। मनरेगा में जेसीबी मशीन से कार्य करने-कराने की शिकायते भी अमूमन समक्ष आती रहती है। लेकिन परिणाम सिर्फ "ढांक के तीन पात" ही मिलते हैं। यहां विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि देश की आजादी से लेकर फुलियां कलां उपखंड व क्षेत्र के कस्बे सहित क्षेत्र में अनेकों कच्ची सड़कों पर मात्र "मिट्टी" डालने का कार्य ही होता रहा। आज भी अनेको कच्ची सड़कें अपनी मूक व्यथा व्यक्त कर रही है। इन कच्ची सड़कों पर वर्षो से अनवरत आज तक लाखों करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए। इन सड़कों की मिट्टी आंधी में उड़ गई या बरसाती पानी में बह गयी। ऐसी अनेक सड़कों का आज तक "पक्का" नहीं होना अत्यंत ही अफसोस जनक एवं खेदजनक ही कहा जाएगा। साथ ही कथित रूप से "चरागाह भूमि" बताकर खातेदारी भूमि पर फेमिन के तहत् लाखों रूपए खर्च कर मेडबंदी के नाम पर सरकारी मिट्टी डलवा दी गई। इन सब मामलों की सीएजी आडिट, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो या सीबीआई की गंभीर जांच पड़ताल से सच्चाई व हकीकत उजागर हो सकती है। ख़ैर, वर्तमान में सरकार व प्रशासन को "मनरेगा" श्रमिकों के हितों को दृष्टिगत रखते हुए रोजाना के "समय व टास्क" को व्यापक जनहित में "कम" करना हितकर व श्रेयस्कर होगा। सरकार व प्रशासन को इस सम्बन्ध में अविलम्ब संज्ञान लेकर विचार-विमर्श व चिंतन मनन कर प्रभावी व कारगर कार्यवाही अमल में लानी चाहिए।

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