परंपरा-: भीलवाड़ा में निकली जिंदा व्यक्ति की अंतिम यात्रा, दाह संस्कार से पहले उठकर भाग जाता है मुर्दा

By :  prem kumar
Update: 2025-03-21 11:17 GMT

 भीलवाड़ा बीएचएन। भीलवाड़ा में होली तय पर्व की बजाय शीतला अष्टमी पर ज्यादा खेली जाती है। शुक्रवार को शीतला अष्टमी होने पर यहां होली खेली गई। साथ ही परम्परागत से हर साल की तरह मुर्दे की सवारी भी निकाली गई। यह परंपरा 425 साल पुरान है।

भीलवाड़ा शहर में शुक्रवार को होली खेलते हुये चित्तौड़वालों की हवेली से मुर्दे की यात्रा निकाली गई। जिसमें रंग-गुलाल उड़ाते हुये लोग एक जीवित व्यक्ति को मुर्दे की तरह कंधों पर लादकर श्मशान की ओर ले जाते दिखे। श्मशान पहुंचने से पहले ही मुर्दा बना व्यक्ति उठकर भाग जाता है। इस परंपरा को देखने के लिए भीलवाड़ा शहरी क्षेत्र के ही लोग नहीं, बल्कि आस-पास के गांव और कस्बों के लोग भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।

भीड़ में से चुना जाता है मुर्दा

मेवाडक़ालीन परंपरा के तहत मुर्दा की सवारी यानी यात्रा की रस्म हर साल बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। मुर्दा बनने के लिए भीड़ में से ही किसी एक व्यक्ति का चयन किया जाता है। इस मुर्दे को लोक देवता ईलोजी के रूप में बताया जाता है और इसकी सवारी पूरे शहर में निकाली जाती है। सवारी के दौरान रंग-गुलाल उड़ाया जाता है और पुरुष लोकगीतों पर नाचते-गाते चलते हैं। आज दोपहर चित्तौड़ वालों की हवेली पर एकत्रित भीड़ में से एक युवक का चयन कर उसकी अर्थी सजाई गई। लोगों ने गुलाल उड़तो हुये शव यात्रा निकाली। यह शहर के स्टेशन चौराहा, गोल प्याऊ होती हुई बड़ा मंदिर पहुंची, जहां हर साल की तरह अर्थी पर लेटा युवक भीड़ में गायब हो गया और उसकी जगह फिर डमी पुतले को जलाया जाता है।

पुलिस ने किये सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध

मुर्दे की यात्रा को देखते हुये पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किये। एएसपी मुख्यालय पारस जैन के नेतृत्व में पुलिस टीम ने सुरक्षा की कमान संभाली। बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी इस यात्रा को देखते हुये तैनात किये गये। 

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