भीलवाड़ा में,तेल में मिलावट का खेल: लोगों की जान जोखिम में, बढ़ते खतरे से उत्पादकों के दावे पर खड़े हो रहे सवाल

By :  vijay
Update: 2024-09-19 14:31 GMT

© एक ही ड्रम से विभिन्न मार्क के तेल के डिब्बे तैयार 

© सरसों के तेल में अरंडी का तेल मिलाया

© उत्पादन कम बिक्री ज्यादा 

vभीलवाड़ाभीलवाड़ा halchalइन दिनों खाद्य तेलों में मिलावट के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। भीलवाड़ा में भी की मामले पकड़े गए हे ,एक ही ड्रम से विभिन्न मार्क के तेल के डिब्बे तैयार करने का बड़ा खेल भीलवाड़ा में थमा  नहीं हे  मिलावटी तेल से कई बार लोगों के बीमार होने और मौत होने तक की घटनाएं घट जाती हैं। सरसों तेल में मिलावट की वजह से होने वाले रोगों को ‘ड्राप्सी’ कहा जाता है। ड्राप्सी का पहला मामला सन 1877 में पश्चिम बंगाल में सामने आया था। हालांकि यह रोग उत्तर भारत में प्रचलित था, जहां सरसों के तेल का प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है। दक्षिण भारतीय राज्यों में ड्राप्सी का कोई मामला नहीं आया, क्योंकि वहां बड़े पैमाने पर मूंगफली या नारियल के तेल का उपयोग होता है। देश के कुछ हिस्सों में 1998 में भी सरसों के तेल में मिलावट के मामले सामने आए थे। इस महामारी ने सरसों तेल की बिक्री को काफी हद तक प्रभावित किया। पिछले दो दशक में कई अन्य तेल, खासकर रिफाइंड तेल ने सरसों तेल के इस अंतराल को भरते हुए बाजार में जबर्दस्त फायदा उठाया है।

सरसों के तेल में आर्जीमोन तेल और दूसरे निम्न गुणवत्ता वाले तेलों की मिलावट की जाती है, जिससे इसकी शुद्धता, पौष्टिकता और गुणवत्ता खराब हो जाती है। इसके अलावा सरसों के तेल में अरंडी का तेल मिलाया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अब 80 फीसद सरसों तेल ‘राइस ब्रान’ यानी धान की भूसी का तेल मिलाकर बनाया जा रहा है।

सरसों का तेल अमेरिका सहित कई देशों में प्रतिबंधित है। अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अनुसार, सरसों के तेल में ‘इरुसिक एसिड’ की मात्रा काफी अधिक होती है। यह एक प्रकार का फैटी एसिड है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यह ठीक से पच नहीं पाता और मस्तिष्क की कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाता है। इरुसिक एसिड कई मानसिक विकारों, जैसे याददाश्त कमजोर होने, से भी जुड़ा हुआ है। यह शरीर में वसा के संचय को बढ़ाता है। इसलिए अमेरिका, कनाडा और यूरोप ने सरसों तेल के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। असल में, इरुसिक एसिड एक प्रकार का ‘मोनोअनसैचुरेटेड ओमेगा-9 फैटी एसिड’ है।

अध्ययनों के अनुसार, इरुसिक एसिड के अधिक सेवन से स्वास्थ्य पर कई संभावित दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इरुसिक एसिड के उच्च स्तर हालांकि मनुष्यों में इन प्रभावों को पूरी तरह से समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। इस एसिड का अधिक सेवन करने से ‘गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल’ समस्याएं हो सकती हैं, जिसमें दस्त, पेट में ऐंठन और मतली शामिल हैं। हालांकि अभी तक निर्णायक रूप से सिद्ध नहीं हुआ है, लेकिन लंबे समय तक इस एसिड के उच्च स्तर के सेवन के संभावित कैंसरजन्य प्रभावों के बारे में भी कुछ चिंताएं हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि पहले सरसों के तेल में धान की भूसी का तेल बहुतायत में मिलाया जाता था, लेकिन अब पाम आयल मिलाया जाने लगा है। पाम आयल सस्ता होने के कारण दुकानदार को अधिक मुनाफा होता है। इन तेलों में रंग, खुशबू और मिर्च का अर्क, सिंथेटिक एलिल आइसोथियोसाइनेट, प्याज का रस और फैटी एसिड की मिलावट की जाती है। त्योहारों और शादियों के मौसम में मांग बढ़ने से मिलावटखोरी और बढ़ जाती है। महंगाई की वजह से सरसों के तेल में मिलावट की जड़ें देश में मजबूती से फैली हुई हैं। बाजार में नकली सरसों का तेल भी खूब बिक रहा है। पाम आयल, राइस ब्रान, सोया आयल मिलाकर सरसों का तेल बनाया और असली सरसों तेल से तीस-चालीस रुपए कम दामों में बेचा जा रहा है। सस्ते दामों में मिलने वाले इन तेलों की खासियत यह होती है कि इनमें किसी तरह की खुशबू नहीं होती है।रसायन और ग्लिसरीन युक्त तेल से गुर्दा संबंधी रोग की आशंका रहती है। मिलावटी तेल में मिले हानिकारक तत्त्व एल्डिहाइड, पालीमर आदि बेहद नुकसानदेह हैं। पालीमर ऐसा तत्त्व है, जो तले जाने के बाद कार्बोहाइड्रेट के साथ मिलकर कैंसर की कोशिकाएं तक विकसित कर सकता है। वहीं फैटी एसिड हृदय की धमनियों में जमता है, जिससे दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है। ‘ड्राप्सी’ से पीड़ित मरीज के शरीर में सूजन के साथ फेफड़ों में पानी जमा होने का खतरा रहता है, जबकि रसायन युक्त तेल लंबे समय तक इस्तेमाल करने से श्वसन तंत्र भी प्रभावित होता है। ट्राई-आर्थो-क्रेसिल फास्फेट एक मिलावटी तत्त्व है, जो खाद्य तेल के रंग के समान होता है। यह देखने पर आसानी से पकड़ में नहीं आता है। यह तेल में घुलनशील है और इसका स्वाद भी खाद्य तेल से ज्यादा अलग नहीं होता। मिलावटी तेल के सेवन से रक्तचाप, दिल का दौरा, कैंसर जैसी घातक बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। इन बीमारियों से बचाव करना है तो तेल खरीदने से पहले तेल की शुद्धता की पहचान करना जरूरी है।सरसों के तेल में मिलावट की पहचान करने के लिए इसका ‘फ्रीजिंग टेस्ट’ किया जा सकता है। इसके लिए एक कटोरी में थोड़ा-सा सरसों का तेल निकाल कर उसे कुछ घंटों के लिए फ्रिज में रख देने और थोड़ी देर बाद इसे बाहर निकाल कर देखा जा सकता है। 

अगर तेल जमा हुआ दिखाई दे या फिर सफेद दाग दिखने लगे तो समझ जाना चाहिए कि तेल मिलावटी है। बैरोमीटर के जरिए भी असली सरसों के तेल की शुद्धता का पता लगता है। बैरोमीटर का अंक 58 से 60.5 है, लेकिन अगर सरसों तेल की ‘रीडिंग’ तय मानक से ज्यादा है, तो तेल नकली है। तेल का रंग बदलने का मतलब है कि इसमें मिलावट की गई है। सरसों के तेल को जांचने के लिए अपने हाथों में थोड़ा-सा तेल लेकर उसे अच्छे से मलना चाहिए। अगर तेल से कोई रंग निकलता या किसी रसायन की गंध आती है तो तेल नकली है।काफी हद तक तेल के बाजार का खेल इसे लेकर किए गए दावों का भी है। कई कंपनियां शुद्ध और सात्विक विधि से तेल बनाकर बेचने का दावा करती हैं, जबकि यह दावा अधिकतर मामलों में झूठा निकलता है। वहीं कच्ची घानी के तेल का दावा भी जोर-शोर से किया जाता है, जो अधिकतर मामलों में संदिग्ध होता है। इस तरह के दावों के झांसों में आकर तेल नहीं खरीदना चाहिए। तेल खरीदने से पहले सतर्कता बरतने से ही मिलावटी तेलों से बचा जा सकता है।सस्ते के फेर में पड़ने से बचने की जरूरत है, क्योंकि यह बाद में बहुत महंगा पड़ता है। मिलावटी खाद्य पदार्थ सरकारी महकमों की उदासीनता और लापरवाही के बिना चलता नहीं रह सकता। जरूरत इस बात की ज्यादा है कि सरकार अपने स्तर से तेल की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए बाजार में बेचे जाने वाले तेल की जांच और नकली तेल बेचने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। साथ ही, मिलावटी तेल सहित सभी खाद्य पदार्थों के असली-नकली होने की पहचान के लिए व्यापक स्तर पर तौर-तरीकों का प्रचार और जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है।

भीलवाड़ा में  पिछले कुछ माह पूर्व जयपुर की टीम ने मिलावटी तेल के खेल का काला चिठा खोला था मगर अब फिर ये खेल शुरू हो गया हे . जबकि स्वास्थ्य  महकमा  अभियान चलाये हुए हे . मगर कोइ बढ़ा कारोबारी  पर शायद नजर नहीं पड़ी या ...! कुछ नामचीन के तेल की जितनी मांग हे शायद उनके कारखाने में उतने उत्पादन की क्षमता ही नहीं होगी  मगर  .....!  तेल में मिलावट का खेल लोगों की जान जोखिम में, बढ़ते खतरे से उत्पादकों के दावे पर खड़े हो रहे सवाल

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