संदिग्ध लेन-देन पर पुलिस को मिली बड़ी शक्ति, मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना फ्रीज कर सकेगी बैंक खाता ,इलाहाबाद हाई कोर्ट
प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत संदिग्ध लेन-देन की जांच के दौरान पुलिस को अभियुक्त की संपत्ति जब्त करने का अधिकार है। पुलिस को इसके लिए मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति लेने की जरूरत नहीं है, उसे सिर्फ इसकी जानकारी मजिस्ट्रेट को देनी होगी।
बैंक खाता फ्रीज करने पर स्पष्ट किया नियम
हाई कोर्ट ने कहा कि जांच के दौरान पुलिस बैंक खाता फ्रीज (जब्त) करा सकती है। यदि खाताधारक अपना खाता डी-फ्रीज कराना चाहता है, तो उसे संबंधित विवेचना अधिकारी या मजिस्ट्रेट से संपर्क करना होगा।
कौशांबी निवासी शिक्षामित्र की याचिका पर फैसला
यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार और न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने कौशांबी की शिक्षामित्र मारुफा बेगम की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याची का बैंक खाता मूरतगंज स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा शाखा में है, जिसे संदिग्ध लेन-देन के चलते फ्रीज कर दिया गया था।
गुजरात पुलिस की सिफारिश पर खाता फ्रीज
मारुफा बेगम को बैंक की ओर से बताया गया कि गुजरात पुलिस की साइबर क्राइम ब्रांच, आणंद के निर्देश पर 35 हजार रुपये के संदिग्ध ट्रांजैक्शन के चलते यह कार्रवाई की गई। यह रकम कथित तौर पर एक व्यक्ति मुश्ताक अली द्वारा ट्रांसफर की गई थी।
कोर्ट में दी गई दलीलें
याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि मारुफा बेगम का उस व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है, इसलिए खाता दोबारा चालू किया जाए। जबकि बैंक की ओर से बताया गया कि खाता साइबर क्राइम जांच के अधीन है और जांच पूरी हुए बिना या अदालत के आदेश के बिना इसे डी-फ्रीज नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
कोर्ट ने भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 106 का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस को अपराध से जुड़ी संपत्ति या खाते को फ्रीज करने का अधिकार है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के तीस्ता सीतलवाड़ बनाम राज्य गुजरात (2018) मामले के निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा कि यह कार्रवाई वैध मानी जाएगी।
खंडपीठ ने याची को निर्देश दिया कि वह राहत के लिए विवेचना अधिकारी या मजिस्ट्रेट से संपर्क करे।
