स्वतंत्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना स्मृति सम्मान समारोह ,तीन लेखकों का हुआ सम्मान

Update: 2024-12-29 04:34 GMT


चित्तौड़गढ़(हलचल)। 'विरासत का गर्व करना अच्छी बात है किन्तु विरासत के सन्देश को व्यापक बनाना और उसे सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना से जोड़ना कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। सम्भावना संस्थान ने मेवाड़ के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना की स्मृतियों को सहेजने का जैसा अनुष्ठान किया है वह सचुमच अनुकरणीय है।' सुपरिचित लेखक और निबंधकार डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने स्वतंत्रता सेनानी रामचन्द्र नन्दवाना स्मृति सम्मान समारोह में प्रो अवधेश प्रधान और प्रताप गोपेन्द्र को सम्मानित करते हुए कहा कि इन दोनों लेखकों ने हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को नयी पीढ़ी के लिया पुनर्नवा किया है।

आयोजन में वर्ष 2022 के लिए सोपान जोशी की कृति 'जल थल मल', 2023 के लिए अवधेश प्रधान की 'सीता की खोज' और 2024 के लिए प्रताप गोपेन्द्र की कृति 'चंद्रशेखर आज़ाद : मिथक बनाम यथार्थ' को सम्मानित किया गया। डॉ अग्रवाल, हिंद ज़िंक मजदूर संघ के महामंत्री घनश्याम सिंह राणावत, प्रो माधव हाड़ा और शहर के साहित्य प्रेमियों ने लेखकों को शॉल, प्रशस्ति पत्र और राशि भेंट कर अभिनन्दन किया। युवा शिक्षक डॉ माणिक ने सोपान जोशी, डॉ रेणु व्यास ने अवधेश प्रधान और महेंद्र खेरारू ने प्रताप गोपेन्द्र के लिए प्रशस्ति वाचन किया।

सम्मान ग्रहण करते हुए कशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो अवधेश प्रधान ने अपनी कृति 'सीता की खोज' के संदर्भ में कहा कि राजनीति भूगोल की छोटी-छोटी सीमाओं में बाँटकर प्रभुत्व का दम भर सकती है लेकिन सीता ने जन-मन में सब सीमाओं के ऊपर प्रेम और करुणा का जो भाव सेतु बाँध दिया है उसे तोड़ना किसी राज्य और सेना के बूते में नहीं है। प्रो प्रधान ने कहा कि वाल्मीकि से तुलसीदास और लोककवियों तथा लोककाव्यों ने हजारों वर्षों तक लाखों लोगों के हृदय में सीता की भावमूर्तियाँ गढ़ी हैं। उन्होंने बताया कि वाल्मीकि. महाभारत, भास, कालिदास, भवभूति, तुलसीदास और लोकगीतों की सीता को खोजते हुए उन्होंने पाया कि भारतीय जनमानस में सीता की छवि अत्यंत उज्ज्वल और पावन है जो हमेशा मनुष्य जीवन को संवेदनशील और संघर्षशील बनाती रहेगी।

पुलिस सेवा के अधिकारी और लेखक प्रताप गोपेन्द्र ने कहा कि चित्तौडग़ढ़ की वीर भूमि पर इस सम्मान को ग्रहण करना अविस्मरणीय अनुभव है। उन्होंने अपनी कृति के सम्बन्ध में कहा कि अमर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद की छवि में मिथक और यथार्थ इतने अधिक घुलमिल गए हैं कि उनकी वास्तविक छवि को प्राप्त करना अत्यंत दुष्कर है। उन्होंने पुस्तक की रचना प्रक्रिया की जानकारी देते हुए कहा कि अंगरेजी शासन की पत्रावलियों और दस्तावेजों को खोजने और उनका सही विश्लेषण कर आज़ाद की वास्तविक पहचान करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण सफर रहा। इस कृति ने अनेक नवीन तथ्यों का उदघाटन किया है जिससे आज़ाद के सम्बन्ध में प्रचलित अनेक विरोधाभासों का संधान हो सकता है।

इससे पहले आयोजन में स्वागत भाषण करते हुए संभावना के अध्यक्ष लक्ष्मण व्यास ने बताया कि वर्ष नन्दवाना के शताब्दी वर्ष 2019 से प्रारम्भ हुए इसे सम्मान में अब तक कुल छह विद्वान लेखकों की कृतियों को चुना गया है।

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