शाहपुरा में ग्रीन लिटिल बेबी की पहल से बच्चों ने मनाई पर्यावरण-मित्र दिवाली, दिया देश को अनोखा संदेश

Update: 2025-10-19 13:38 GMT

शाहपुरा मूलचन्द पेसवानी

दीपावली के पावन अवसर पर शाहपुरा में एक अनोखी और प्रेरणादायक पहल देखने को मिली, जब “ग्रीन लिटिल बेबी” श्रेया कुमावत की ओर से “प्रकृति और संस्कृति संग कृ सद्भावना की दिवाली” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। रविवार को हुए इस विशेष आयोजन ने समाज को न केवल स्वच्छ और हरित पर्व मनाने की प्रेरणा दी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति एक नई चेतना भी जगाई।

कार्यक्रम में नन्हे बच्चों ने अपने अनोखे अंदाज में दिवाली मनाते हुए यह दिखाया कि त्योहार का अर्थ केवल रोशनी और सजावट नहीं, बल्कि धरती और जीवन के प्रति कृतज्ञता भी है।

कार्यक्रम के दौरान प्रत्येक बच्चे को अपने औषधीय गार्डन में लगे गन्ने का पौधा दिया गया जो धरती की समृद्धि और हरियाली का प्रतीक माना गया। बच्चों ने गन्ना हाथ में लेकर सामूहिक रूप से “ग्रीन शपथ” ली।

इस दौरान बच्चों ने संकल्प लिया कि “हम पटाखे नहीं जलाएँगे, क्योंकि उनका धुआँ हमारे आसमान के पंछियों की साँसें रोक देता है। हम दीयों से नहीं, पौधों से रोशनी फैलाएँगे।” नन्हे बच्चों की यह गूंजती प्रतिज्ञा पूरे वातावरण में संवेदना और प्रेरणा का संचार कर गई। उपस्थित सभी लोग बच्चों की मासूम आवाज में झलकती गंभीरता से भावविभोर हो उठे।

इस कार्यक्रम में बच्चों ने पटाखों की जगह मिट्टी के दीपक और औषधीय पौधों से सजावट की। उन्होंने पुनः उपयोग योग्य सजावट सामग्री का प्रयोग करते हुए यह संदेश दिया कि “सच्ची दिवाली वही है, जिसमें धरती मुस्कुराए।” ग्रीन बेबी श्रेया कुमावत और उनके साथियों ने अपने हाथों से बने पारंपरिक दीयों और हरित गार्डन डेकोरेशन से यह सिद्ध किया कि पर्यावरण-मित्र त्योहार न केवल सुंदर होता है बल्कि जीवनदायी भी है।

“सद्भावना की दिवाली” कार्यक्रम ने संस्कृति और प्रकृति के बीच एक अद्भुत संतुलन प्रस्तुत किया। इस पहल ने यह साबित किया कि नन्हे बच्चे भी बड़े बदलाव की दिशा में प्रेरक भूमिका निभा सकते हैं। कार्यक्रम में बच्चों ने अपने गीतों, कविताओं और संदेशों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का आह्वान किया। कार्यक्रम के अंत में आयोजकों ने सभी से अपील की कि इस वर्ष हर घर “ग्रीन दिवाली” मनाए, जिसमें न शोर हो, न धुआँ कृ बस प्रेम, प्रकृति और सकारात्मक ऊर्जा की रोशनी हो। इस हरित पहल ने शाहपुरा की दिवाली को अनोखा और प्रेरणादायी बना दिया। बच्चों की मासूमियत और पर्यावरण के प्रति उनकी संवेदना ने यह साबित कर दिया कि आने वाला भविष्य न केवल उज्ज्वल बल्कि हरित भी होगा।

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