पुरुषों की आस्था महिलाओं में आ गई लेकिन परंपरा अभी भी बरकरार है

भगवानपुरा ( कैलाश शर्मा )। पिछले कई वर्षों से भगवानपुरा में निकाले जा रहे भगवान लक्ष्मीनाथ के बैवाण के साथ कई पुरुष भजन कीर्तन करते हुए आते थे मगर जमाने के अनुसार परिवर्तन होता रहा और आज स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि इस बैवाण के साथ में महिलाएं भजन कीर्तन करते हुए चल रही है , इतना ही नहीं भजन कीर्तन के साथ रामधुनी , गीत गाते हुए नाचते हुए भगवान के बैवाण के साथ चल रही है भले ही पुरुषों की जगह महिलाओं ने ले ली है लेकिन महिलाओं में भक्ति भावना की इच्छा जागी और बैवाण को भले ही पुरुष ला रहे हैं लेकिन भजन कीर्तन में महिलाएं आगे आकर भक्ति भाव में सरोबार हो रही है । स्मरण रहे पिछले कई वर्षों से भगवानपुरा में भगवान लक्ष्मीनाथ का यह बैवाण प्रत्येक माह की दशमी तिथि को लक्ष्मीनाथ मंदिर से निकलकर गांव के मुख्य मार्गो से होता हुआ भगवान सत्यनारायण मंदिर जाकर पुनःभगवान लक्ष्मीनाथ के मंदिर पर पहुंचता था जिसे माहेश्वरी समाज के लोगो द्वारा कंधो पर एवं बैसाखियो के सहारे नगर भ्रमण कराकर पुनः मंदिर लाते थे लेकिन जमाने के अनुसार रास्ते में भी परिवर्तन हुआ और भगवान लक्ष्मीनाथ का बैवाण मंदिर से निकलकर रघुनाथ जी के मंदिर होते हुए नरसिंह मोहल्ला स्थित नृसिंह मंदिर एवं ब्रह्मपुरी में स्थित बंसी वाला मंदिर होते हुए पुनः भगवान लक्ष्मी नाथ के मंदिर पर पहुंच जाता है और कंधों के बजाय भगवान के बैवाण को लारी में बिठाकर लाया जाता है । लेकिन भगवान का जो बेवाण है वह पूर्व में जहां लकड़ी का होता था आज भगवान चांदी के बैवाण में विराजित होकर नगर भ्रमण कर रहे हैं यह अत्यंत हर्ष का विषय है इसी के साथ महिलाएं भजन कीर्तन करते हुए रामधुनी गाते हुए साथ में चलती है एवं भगवान के प्रकाश के लिए तेल की जोत जलाकर अभी भी भगवान के प्रकाश किया जा रहा है । भले ही पुरुषों की आस्था महिलाओं में आ गई है लेकिन आज भी भगवानपुरा में परंपरा बरकरार है ।