दूसरी बार होगा जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव, 7 जुलाई को निकलेगी यात्रा

Update: 2024-06-17 13:07 GMT

राजसमंद (राव दिलीप सिंह) नगर के धार्मिक उत्सवों में 7 जुलाई को एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया रविवार 7 जुलाई को दूसरी बार नगर में जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव का आयोजन होगा। लम्बे समय से नगरवासी जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव आयोजन को लेकर प्रयासरत थे। गत वर्ष से इस उत्सव की शुरुआत की गईं। कार्यक्रम के अनुसार प्रातः भगवान का अभिषेक होगा, फिर दोपहर 12 बजे इंद्र महायज्ञ, खेड़ा देवत पूजन, दोपहर 2 बजे मंदिर प्रांगण से कलश व रथ यात्रा शूरू होगी जो नगर के विभिन्न मार्गों से होते हुए पुनः मंदिर प्रांगण में विराम लेगी । आयोजन समस्त नगरवासियों द्वारा किया जा रहा है। आयोजन को लेकर रविवार रात को नरसिंह द्वारा भैरू बावड़ी में बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में यात्रा के आयोजन को लेकर व्यापक रूप रेखा तैयार की गईं। इस दौरान मदन लाल पुरोहित, किशन लाल छीपा, जयसिंह शर्मा, कौशल गौड़, मनोहर सिंह पंवार, सुरेश सोनी, धर्मेश छीपा, शान्ति लाल पालीवाल, निर्मला शर्मा, जयसिंह भाटी, अर्जन लाल टेलर, लाल चंद जांगिड, रूप सिंह राव, राजेंद्र कुमार शर्मा, पुरुषोत्तम पालीवाल, कन्हैया लाल गर्ग, नंद लाल पालीवाल, गणपत लाल चौधरी, भेरूलाल टेलर, करण सिंह, अंकुर महात्मा, टिंकू टेलर आदि उपस्थित थे।

हाथ से खिचेगे रथ

परंपरा के अनुसार जगन्नाथ पुरी में निकलने वाली रथ यात्रा में भगवान के रथ को हाथ से खींचा जाता है। उसी परंपरा के अनुसार नगर में पहली बार निकलने वाली रथ यात्रा में भगवान के विग्रह को रथ में बिराजित किया जायेगा। फिर रथ को भक्तो द्वारा हाथ से खींचा जायेगा।

क्या है रथ यात्रा के पीछे की कहानी?

उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, भगवान श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला-भूमि है। उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथ जी ही माने जाते हैं। यहाँ के वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं। इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से सम्पूर्ण जगत का उद्भव हुआ है। श्री जगन्नाथ जी पूर्ण परात्पर भगवान है और श्रीकृष्ण उनकी कला का एक रूप है। ऐसी मान्यता श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य पंच सखाओं की है। पूर्ण परात्पर भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है। यह रथयात्रा पुरी का प्रधान पर्व भी है। हर साल आषाढ़ के महीने में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा ओडिशा के पुरी जगन्नाथ मंदिर से निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ श्री कृष्ण के ही अवतार हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने द्वारका के दर्शन करने की इच्छा ज़ाहिर की थी और तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन को रथ में बिठाकर घुमाया था और तभी से रथ यात्रा की शुरुआत हुई थी। ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर रथ को खींचता है उसको सौ यज्ञ करने बराबर पुण्य मिलता है। रथयात्रा में जगन्नाथ भगवान के रथ के साथ उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के रथ भी शामिल होते हैं। इनके रथ अक्षय तृतीया से ही बनने शुरू हो जाते हैं। जब तीनों रथ बनकर तैयार हो जाते हैं तब इन तीनों रथों की विधिवत पूजा की जाती है. इतना ही नहीं जिस रास्ते से यह रथ निकलने वाले होते हैं उसे 'सोने की झाड़ू' से साफ़ भी किया जाता है।

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