श्री द्वारकाधीश मंदिर में नाव मनोरथ: जनसैलाब उमड़ा, अलौकिक दर्शन का लाभ

कांकरोली, राजसमंद: श्री पुष्टिमार्गीय तृतीय पीठ प्रन्यास के श्री द्वारकाधीश मंदिर में आषाढ़ कृष्ण पक्ष चतुर्थी, रविवार को भव्य "नाव मनोरथ" का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। इस अलौकिक मनोरथ में प्रभु श्री द्वारकाधीश के दिव्य स्वरूप के दर्शन कर भक्तजन भाव-विभोर हो गए।
प्रातः श्रृंगार में प्रभु के मस्तक पर धनक की पाग तापे कतरा, धनक के सूथन पटका और मोती के आभूषण सुशोभित थे। माला फोंदा का विशेष श्रृंगार किया गया। शाम को शयन के समय मोगरा की कलियों और फूलों से प्रभु का श्रृंगार किया गया, जिससे संपूर्ण मंदिर परिसर सुगंधित हो उठा।
राजभोग से पूर्व, प्रभु के रतन चौक में लगभग साढ़े तीन फीट यमुना जल भरा गया। इस पवित्र यमुना जल में सफेद कमल, गुलाबी कमल और कमल की पत्तियों को प्रवाहित किया गया, जिससे एक मनमोहक दृश्य उत्पन्न हुआ। यमुनाजी में रहने वाले जीवों को दर्शाने के लिए लकड़ी के बने मगरमच्छ, मछलियां, बतखें और कछुए भी जल में प्रवाहित किए गए। विशेष रूप से, विट्ठल विलास बाग, कांकरोली से लाई गई जीवित बतखें भी यमुना जल में छोड़ी गईं, जो प्रभु द्वारकाधीश और दर्शनार्थियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रहीं।
यमुनाजी जल के कोने-कोने में केले के पेड़ भी लगाए गए, जो ब्रज के नैसर्गिक बगीचे का आभास करा रहे थे। नाव को मोगरे के फूलों की मालाओं से अत्यंत भव्यता से सजाया गया था।
इसके बाद, पीठाधीश्वर गोस्वामी 108 डॉक्टर श्री वागीश कुमार जी महाराज श्री की आज्ञा से युवराज गोस्वामी श्री वेदांत कुमार जी महाराज एवं श्री सिद्धांत कुमार जी महोदय ने नाव का अधिवासन किया। जल अधिवासन की यह प्रक्रिया अत्यंत अद्भुत और प्रतीकात्मक होती है।
गोस्वामी जी ने ग्रीष्म ऋतु काल में इस अलौकिक भाव के गूढ़ अर्थ को समझाया। उन्होंने कहा कि यह मनोरथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि जीव के लिए जीवन जीने की पद्धति भी इसमें छिपी है। यदि आपके अंतरंग में कोई ताप है, चाहे वह विरह से हो, क्लेश से हो, या सांसारिक कारणों से हो, तो यमुना की कृपा आपको शीतलता प्रदान कर सकती है, वहीं माँ गंगे आपको संसार से तार सकती हैं। उन्होंने अष्टछाप के परमानंद दास जी के पद "बैठे घनश्याम सुंदर, खेवत है नाव" का उल्लेख किया, जिसमें घनश्याम में ही श्री यमुने का श्याम स्वरूप समाया है। नंददास के पद "चंदन पहाड़ नव हरि बैठे संग वृषभान दुलारी हो।। यमुना पुलिन फुल शोभित तहां खेलत लाल बिहारी हो।।" का भी स्मरण किया गया।
नाव में विराजमान प्रभु द्वारकाधीश का सुंदर रूप अत्यंत मनमोहक लग रहा था। पीठाधीश्वर गोस्वामी 108 डॉक्टर श्री वागीश कुमार जी महाराज श्री कांकरोली नरेश, तृतीय पीठ युवराज गोस्वामी वेदांत कुमार जी एवं तृतीय पीठ युवराज गोस्वामी श्री सिद्धांत कुमार जी, गोस्वामी संजीव कुमार जी, मुखिया जी और सह-मुखिया जी ने अत्यंत श्रद्धा और प्रेम से नाव चलाई। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो साक्षात प्रभु द्वारकाधीश ही नाव में विराजमान होकर स्वयं नाव चला रहे हों, जिससे भक्तजन धन्य हो गए।