साहित्य

दो औरतें
भोर हुई 
अस्तित्व की सार्थकता
अहसास
सिहर रही गेरुई ज्वाला
जाड़ कहति बा :
कोशिश
कैसे कटा 21 से 55 तक का यह सफ़र
दुनियाँ इसे दीपावली कहती*
एक दीपक तुम जलाओ, एक दीपक हम जलाएं
2 अक्टूबर : दो हस्तिया
बड़े भाग से बेटियाँ